Tuesday, March 03, 2009

मंदी से मुकाबले की नीति

देश को आर्थिक मंदी से बचाने के लिए सरकार ने सरकारी खर्चों में वृद्धि का निर्णय लिया है। मंदी की मार मुख्य रूप से निर्यातकों पर पड़ रही है। विदेशों से मिले आर्डर कैंसिल हो रहे हैं। हमारी अर्थव्यवस्था में इस रास्ते मांग में कटौती हो रही है। सोच यह है कि इस कटौती की भरपाई सरकारी खर्चों में वृद्धि से हासिल कर ली जाएगी। हमारे स्टील निर्माता अपना हाथ मसल रहे हैं। उनके उत्पादन दबाव में हैं। ऐसे में भारत सरकार द्वारा हाईवे आदि बनाने में खर्च बढ़ाने में स्टील की घरेलू मांग में वृद्धि होगी और हमारे स्टील उद्योग जीवित रह सकेंगे। इस दृष्टि से अंतरिम बजट में केंद्र सरकार के वित्तीय घाटे को 2.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत कर दिया गया है। सरकार द्वारा ऋण लेकर खर्च करने को वित्तीय घाटा कहा जाता है। यदि सरकार की टैक्स आदि के माध्यम से आय 100 रुपये हो और खर्च 160 रुपये हो तो वित्तीय घाटा 60 रुपये होता है।
इस घाटे की पूर्ति सरकार ट्रेजरी बांड बेचकर करती है। इस प्रकार ऋण लेकर खर्च करने के दो परस्पर विरोधी प्रभाव पड़ते हैं। मान लें कि वर्तमान में पूंजीपति ऋण लेकर कारखाने लगा रहे हैं अथवा उपभोक्ता ऋण लेकर कार खरीद रहे हैं। उन्हें वर्तमान में ऋण 13 प्रतिशत की दर से उपलब्ध है। रिजर्व बैंक द्वारा कैश रिजर्व रेशियो एवं रेपो रेट कम कर देने के कारण उद्यमी और उपभोक्ता को ऋण कम ब्याज दर पर उपलब्ध है।ऐसे में बांड बेचकर सरकार उपलब्ध रकम को बाजार से उठा लेती है। जो रकम पूर्व में उपभोक्ता द्वारा खपत में उपयोग की जा रही थी वह अब सरकार द्वारा हाईवे बनाने में उपयोग की जाने लगी। उपभोक्ता को कार खरीदने के लिए ऋण नहीं मिला।
समग्र दृष्टि से इस नीति का प्रभाव कम ही होगा, क्योंकि बढ़े हुए सरकारी खर्च के सुप्रभाव के सामने उपभोक्ता द्वारा खर्च में कटौती होगी। सरकारी खर्चों में वृद्धि से मंदी को तोड़ना संभव हो सकता है, लेकिन यह सरकारी खर्चों की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा।
सरकार ने छठे वेतन आयोग की संस्तुति को लागू करके कर्मचारियों को अधिक रकम उपलब्ध कराई है। यदि ये कर्मचारी इस अतिरिक्त रकम का फिक्स डिपाजिट करा देते हैं तो बाजार में मांग उत्पन्न नहीं होगी। यदि वे जापान में निर्मित टेलीविजन खरीदते हैं तो मांग वहां उत्पन्न होगी, परंतु यदि वे भारत में निर्मित कार अथवा मुंबई में प्रापर्टी खरीदते हैं तो मांग भारत में निर्मित होगी।
स्पष्ट होता है कि सरकारी खर्च की सार्थकता इस बात पर निर्भर करती है कि भारत में निमिर्त माल की कितनी खरीद हुई? सरकार की वर्तमान पालिसी में यह संकट है। बुनियादी संरचना में बढ़ाए गए खर्च का बड़ा हिस्सा विदेशी कंपनियों के माध्यम से दूसरे देशों को चला जाता है।
सरकारी कर्मचारियों को दिए गए उन्नत वेतन से भी घरेलू मांग कम उत्पन्न होती है, क्योंकि उनमें बचत की प्रवृत्ति ज्यादा होती है।
रोजगार गारंटी जैसे जनहित कार्यक्रमों की भी यही गति है। इनमें किए गए खर्च का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों द्वारा प्रशासनिक खर्चों में व्यय हो जाता है, जो बाजार में मांग कम उत्पन्न करता है।
सरकार को चाहिए था कि खर्च ऐसे स्थान पर करे जहां घरेलू मांग स्पष्ट रूप से उत्पन्न हो। मसलन यदि हर मतदाता को दो हजार रुपये का चेक रिजर्व बैंक द्वारा भेज दिया जाए तो देश के 80 प्रतिशत गरीब लोग इस रकम से देश में निर्मित कपड़े, चप्पल एवं चाय की खरीद करेंगे और मंदी तोड़ देंगे। सरकार की खर्च करने की नीति तो सही है, किंतु प्रक्रिया सही नहीं है। सरकार को चाहिए कि खर्च ऐसे स्थान पर बढ़ाए जहां स्पष्ट रूप से घरेलू मांग तत्काल उत्पन्न हो।
मंदी तोड़ने के सफर में सरकार की नीति का दूसरा बिंदु वैश्विक पूंजी को आकर्षित करने का है। सरकार ने कई क्षेत्रों में सीधे विदेशी निवेश को छूट दी है। सरकार चाहती है कि देश में विदेशी पूंजी का आगमन हो जो हमारे देश के बाजार में मांग उत्पन्न करे।
विदेशी निवेशक यदि भारत में कार बनाने का कारखाना लगाएंगे तो यहां स्टील की मांग बढ़ेगी। यह नीति पेंचीदी है। दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था के विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ाव के कई आयाम हैं। विदेशी पूंजी के आगमन को खुली छूट देने के साथ-साथ विदेशी माल के प्रवेश को भी खुली छूट देनी होती है।
इस समय संपूर्ण विश्व मंदी के दबाव में है। सभी देश अपने माल को बेचने के लिए नए बाजारों की खोज में हैं। वे अपने माल को सस्ता बेचने को उद्यत हैं। ऐसे में विदेशी माल को प्रवेश की छूट देने से आयातों में वृद्धि होगी और विदेशी निवेश से उत्पन्न मांग कट जाएगी। सरकार को चाहिए था कि विदेशी माल के आयात पर रोक लगाती। सरकार ने इस दिशा में एक छोटा सा कदम उठाया भी है। देश में उत्पादित माल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती की है। इससे देश में उत्पादित माल कुछ सस्ता हो जाएगा और आयातित माल से लोहा ले सकेगा। इस सही नीति के साथ-साथ आयात करों में वृद्धि करके अपने उत्पादन सुरक्षित कर देने चाहिए थे।
सरकार ने विदेशों में रखे मुद्रा भंडार को ज्यों का त्यों बना रखा है। खबर है कि इनमें मामूली गिरावट आई है। वर्तमान में यह रकम लगभग 250 अरब डालर है, जो निष्कि्रय पड़ी है। इस रकम को घर वापस लाना चाहिए। जिस प्रकार अकाल के समय में किसान अपना फिक्स डिपाजिट तोड़ देता है उसी प्रकार सरकार को मंदी के इस दौर में इस रकम को तोड़ देना चाहिए। इस रकम की वापसी से भी विदेशी निवेश की तरह घरेलू मांग में पुर्नजीवन आ जाएगा, परंतु अपनी रकम की वापसी और विदेशी निवेश में मौलिक अंतर है। मुद्रा भंडार की वापसी में हमें अपने बाजारों को आयातों के लिए खोलने की कोई अनिवार्यता नहीं रहती है। संकट से निपटने के लिए हमें विदेशी निवेश को आकर्षित करने के स्थान पर अपने मुद्रा भंडार को वापस लाना चाहिए।
सरकार द्वारा लागू की जा रही नीतियों के तीन सार्थक पक्ष हैं। सरकारी खर्चों में वृद्धि, एक्साइज दर में कटौती एवं विदेशी मुद्रा भंडार को यथावत रखना, परंतु इनमें सुधार की जरूरत है। सरकारी खर्चों में वृद्धि को आम आदमी की ओर मोड़ना चाहिए। एक्साइज ड्यूटी में कटौती के साथ-साथ आयात करों में वृद्धि होनी चाहिए।
विदेशी मुद्रा भंडार को यथावत रखने के स्थान पर इसे तोड़कर घर वापस लाना हितकर होगा। हमारी आर्थिक विकास दर 10 प्रतिशत से घटकर 7 प्रतिशत पर टिकी हुई है। सरकार द्वारा लागू इन आधी अधूरी नीतियों के बावजूद विकास दर स्थिर बनी हुई है। इसका श्रेय भारत की बुद्धिमान जनता को जाता है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा में हार-जीत की अंतिम कसौटी श्रम, विशेषकर मानसिक श्रम का उत्पादन मूल्य होता है। हमारी संस्कृति में मानसिक श्रम के उत्पादन मूल्य को अनेक प्रकार से न्यून रखा गया है। प्रणाम करना, टीका लगाना, परिक्रमा करना, गुलाब के फूल से पूजा करना आदि उपायों से हमने मानसिक श्रम का उत्पादन मूल्य कम बनाए रखा है। वैश्विक मंदी के भारत में गहरी पैठ न बना पाने का यही मुख्य कारण है। यदि सरकारी नीतियों में सुधार हो जाए तो सोने में सुहागा जैसी बात हो जाएगी। हम उस समय उड़ रहे होंगे जब शेष विश्व डूब रहा होगा।
(लेखक भरत झुनझुनवाला आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

8 comments:

  1. Anonymous8:05:00 PM

    हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। आशा है आपके बहुमूल्य विचारों से हम लाभान्वित होंगे।

    अपने लेख को कई पैराग्राफ में बांट कर लिखें तो इसे पढ़ने में आसानी होगी, रूचि बनी रहेगी

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  2. achhi jaankari...

    हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है....

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  3. अच्छा जानकारी परक आलेख!

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  4. Anonymous12:32:00 AM

    नये ब्‍लाग के लिए ढेरों शुभकामना। आशा है भविष्‍य में आपको अपने उदेश्‍यों में सफलता मिलेगी। धन्‍यवाद।

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  5. Anonymous12:33:00 AM

    नये ब्‍लाग के लिए ढेरों शुभकामना। आशा है भविष्‍य में आपको अपने उदेश्‍यों में सफल होंगे। धन्‍यवाद।

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  6. ब्लाग संसार में आपका स्वागत है। लेखन में निरंतरता बनाये रखकर हिन्दी भाषा के विकास में अपना योगदान दें।
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    रायटोक्रेट कुमारेन्द्र

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  7. गम्भीर विवेचना.........

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  8. ब्लोगिंग जगत मे स्वागत है
    शुभकामनाएं
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
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