Tuesday, December 21, 2010

महंगाई

वर्ष 2010 संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार आवश्यक वस्तुयों के उपभोग में दलित सामान्य वर्ग से 42 % पीछे है, अर्थात राष्ट्रीय उत्पादन और सकल घरेलु उत्पाद में दलितों की स्थति हताशपूर्ण है ! 
भारतीय अर्थव्यवस्था का केंद्र विश्व व्यापार संघठन है इस अर्थशास्त्र में बाजारू क्रूरता है जहाँ करोडपति से अरबपति बनने के राष्ट्रीय राजमार्ग खुले हुए हैं !
भारतीय अर्थ व्यवस्था एक खरब डॉलर से ज्यादा हो गई है लेकिन भारत सरकार द्वारा गठित सुरेश तेंदुलकर समिति रिपोर्ट नें देश में गरीबों का अनुपात 37.2 % बताया जिसने योजना आयोग की अपनी रिपोर्ट को गलत साबित किया जिसमें उसने गरीबों का अनुपात 27% बताया ! केंद्र सरकार द्वारा गठित  अर्जुनसेन गुप्त समिति के अनुसार 77 % आबादी 20 रुपए प्रतिदिन पर गुजारा करने के लिए मजबूर है ! केंद्र सरकार द्वारा ही गठित एन सी सक्सेना समिति ने कैलोरी के आधार पर अपनी रिपोर्ट में गरीब आबादी का अनुपात 50 % बताया ! 
वर्ष 2005 विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 42 % आबादी गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करने को मजबूर हैं जिसमें से एक तिहाई भारत में रहते हैं ! 
Multidimensional Poverty Index (MPI) की रिपोर्ट के अनुसार देश के आठ राज्यों बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम  बंगाल में ग़रीबों की संख्या 42 करोड़ है ! ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार भुखमरी से पीड़ित 84 देशों में भारत  67वाँ स्थान है ! भारत उन 29 देशों में भी शामिल है जहाँ भुखमरी का स्तर सबसे ऊपर है ! 
भारत में आज भी 108 वर्ष पुराना वर्ष 1902 में बना थोक मूल्य सूचकांक  whole-sell price index  के द्वारा महंगाई मापी जाती है ! जबकि अमेरिका एवं ब्रिटेन आदि देशों में मौजूदा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, रिटेल प्राईस इंडेक्स Retail price index  द्वारा निकला जाता है जिस कारण वस्तु का मूल्य सभी चरण पूर्ण होकर उपभोक्ता के पास पहुंचा माल का मूल्य होता है !
अर्थशास्त्र की मान्यता है कि वस्तुओं के मूल्य का निर्धारण मांग और आपूर्ति के सिद्धांतों पर आधारित होता है। यानी कि जब बाजार में मांग के अनुपात में वस्तु की उपलब्धता अधिक होती है तो उसके मूल्य कम होते हैं। वहीं जब बाजार में उस वस्तु की आपूर्ति कम होती है तो उसके मूल्य बढ़ जाते हैं। लेकिन इस महंगाई पर यह नियम लागू नहीं होता। इसे आश्चर्यजनक ही माना जाएगा कि बाज़ार में वस्तुओं की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में है। कोई भी व्यक्ति जितनी मात्रा में चाहे, बहुत आसानी से उतनी मात्रा में खरीदी कर सकता है। फिर भी उनके दाम लगातार बढ़ रहे हैं। इससे यह निष्कर्ष तो निकलता ही है कि वस्तुओं की उपलब्धता कहीं से बाधित नहीं है। अतएव बढ़ती महंगाई की जिम्मेदार कुछ अन्य ताकतें हो सकती हैं
देश में महंगाई के कारण भुखमरी विकराल रूप धारण किये हुए है जिसके प्रमुख कारण
1. खानपान की वस्तुओं पर वायदा कारोबार होना !
2. जमाखोरी एवं काला-बाज़ारी !
3. कमीशनखोरी के कारण खाद्य वस्तुओं का आयात एवं निर्यात !
4. भ्रष्टाचार !
5. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अंधाधुंध मुनाफा कमाने की गरज़ से विभिन्न उत्पादों के दामों में अंधाधुंध इजाफा करती हैं।
परिणाम स्वरुप विश्वबाजार की तुलना में भारत में खाद्य पदार्थ 80 % महंगा है ! खाद्य कुप्रबंधन, जमाखोरी, कालाबाजारी और भ्रष्टाचार  के कारण इस देश  के गरीब भूखे मरने को मजबूर हैं !    
अब यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं है कि महंगाई के शिखर छूते कदमों ने देश को एक अघोषित आर्थिक आपातकाल के गर्त में झोंक दिया है। 

    

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