Tuesday, May 12, 2009
बोफोर्स का सच
सरकार का बेसुरा राग पांच साल के कार्यकाल के शानदार फाइनल में मनमोहन आर्केस्ट्रा अब दिल्ली ओपेरा में पूरी धुन में राग क्वात्रोची छेड़ रहा है। इस आर्केस्ट्रा के सदस्यों में से ज्यादातर इटली में प्रशिक्षित राजनीतिक संगीतकार हैं। ये सदस्य 10 जनपथ की इष्टदेवी को प्रसन्न करने के लिए दिलोजान से प्रयासरत हैं। निर्देशक सहित हर सदस्य उम्मीद कर रहा है कि 16 मई के बाद उसके अनुबंध का नवीनीकरण हो जाएगा। उन्हें पूरा भरोसा है कि भारत के लोग उनकी अनवरत अंधभक्ति के लिए उन्हें पुरस्कृत करेंगे। क्वात्रोची के खिलाफ जारी रेड कार्नर नोटिस वापस लेने का बचाव करके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह प्रोड्यूसर की नजर में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक बन गए हैं। उन्होंने घोषणा की है कि क्वात्रोची मामला सरकार की शर्रि्मदगी बन गया है क्योंकि विश्व देख रहा है कि इटली के इस भगोड़े और सोनिया गांधी के मित्र को हम परेशान कर रहे हैं। राजनीतिक आका को खुश करने के लिए और भी कुछ राजनेताओं ने यही राग अलापना शुरू कर दिया। इनमें कानून मंत्री एचआर भारद्वाज, पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और राजनीति के नए खिलाड़ी शशि थरूर शामिल हैं। मनु सिंघवी तो पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि जो लोग सरकार के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं वे मुर्दे में जान फूंकने का प्रयास कर रहे हैं। श्रीमान थरूर क्वात्रोची को बेचारा भलामानुस बताते हैं। थरूर के अनेक शुभचिंतक क्वात्रोची कंसर्ट में योगदान देने में उनकी तत्परता और उत्सुकता देखकर हैरान-परेशान हैं। यह कंसर्ट सोनिया गांधी के कानों में तो मधुर धुन बजाता है, लेकिन मनमोहन सिंह और उनके साथी यह तथ्य भुला रहे हैं कि जो लोग राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून-व्यवस्था में यकीन रखते हैं उनके लिए यह कर्कश शोर-शराबे के समान है। जब तक मनमोहन सिंह और उनका दल यह कानफोड़ू शोर बंद नहीं करेंगे, तब तक बोफोर्स और क्वात्रोची के बारे में सवाल उठते रहेंगे। दरअसल, बोफोर्स प्रकरण 1980 के दशक में शुरू हुआ लूटो और भागो धारावाहिक है। कहानी अप्रैल 1984 में शुरू होती है जब राजीव गांधी ने सेना के लिए 155 एमएम की तोपें खरीदने का फैसला लिया। फ्रांस की सोफ्मा, स्वीडन की बोफोर्स और आस्टि्रया की वोएस्ट एल्पाइन कंपनियां अनुबंध की दौड़ में शामिल थीं। अनेक जमीनी परीक्षणों के बाद सेना ने सोफ्मा को चुना। हालांकि कुछ गूढ़ कारणों से अंतिम मूल्यांकन में बोफोर्स सबसे आगे निकल गई। 24 मार्च, 1986 को कंपनी से तोपें खरीदने का सौदा हो गया। दलाली का पता तब चला जब स्वीडन की रेडियो ने खुलासा किया कि 1.3 अरब डालर के इस सौदे को हासिल करने के लिए रिश्वत दी गई। राजीव गांधी ने इस खबर को अफवाह बताने का प्रयास किया, लेकिन पत्रकारों की पड़ताल से दलाली की पुष्टि हो रही थी। दूसरे, सरकार के कुछ क्रियाकलापों में विश्वास की कमी झलकती थी। उदाहरण के लिए, वह संयुक्त संसदीय समिति की जांच के लिए राजी हो गए, किंतु उन्होंने समिति में अपने प्रियजनों को भरकर उनसे मनमाफिक रिपोर्ट हासिल कर ली। रिपोर्ट के अनुसार बोफोर्स की खरीद में कोई कमीशन या घूस नहीं दी गई। इस समिति के निष्कर्र्षो का इतना भी महत्व नहीं था, जितना उन कागजों का था, जिन पर वे छपे थे क्योंकि समिति ने इस अंदाज में काम किया जैसे इसका उद्देश्य लीपापोती करना भर था। इस समिति के निष्कर्ष तब फर्जी साबित हो गए जब समाचार पत्र ने साक्ष्य पेश कर दिए कि इस करार के संबंध में अनेक लोगों के स्विस बैंक खातों में पैसा जमा कराया गया। एक समाचार पत्र ने ऐसा सबूत पेश किया जिसने राजीव गांधी के इस दावे की धज्जियां उड़ा दीं कि इस सौदे में कोई कमीशन या घूस नहीं दी गई। इसमें बताया गया कि राजीव गांधी और सोनिया गांधी के इटली के मित्र ओट्टावियो क्वात्रोची न केवल लाभ उठाने वालों में से एक थे, बल्कि वह लाभ हासिल करने वाले प्रमुख खिलाड़ी भी थे। अप्रैल 1984 से सौदे के लिए सौदेबाजी और तोपों के जमीनी परीक्षण चल ही रहे थे कि नवंबर 1985 में अचानक बोफोर्स कंपनी ने एई सर्विसेज नामक कंपनी के साथ एक विचित्र अनुबंध किया। इसमें एई सर्विसेज को प्रतिशत कमीशन देने का वायदा किया गया, अगर यह सौदा 31 मार्च, 1986 तक पूरा हो जाए। आश्चर्यजनक रूप से 24 मार्च, 1986 को बोफोर्स-एई सर्विसेज के अनुबंध की अंतिम तिथि समाप्त होने से एक सप्ताह पहले ही अनुबंध पर हस्ताक्षर हो गए। दो माह बाद भारत सरकार ने बोफोर्स को अनुबंधित धनराशि का 20 प्रतिशत भुगतान कर दिया। बोफोर्स ने तुरंत प्राप्त धनराशि की तीन प्रतिशत रकम यानी 73.35 लाख डालर ज्यूरिख के नार्डफाइनैंज खाते में हस्तांतरित कर दिए। जांच से पता चला कि बोफोर्स ने इस रकम का बड़ा हिस्सा कोलबार इंवेस्टमेंट फर्म में हस्तांतरित किया, जिसका संचालन मारिया और ओट्टावियो क्वात्रोची करते थे। 6 अगस्त, 1987 को जब भारतीय संसद ने घोटाले की जांच की घोषणा की तो क्वात्रोची ने इस धनराशि को इंग्लैंड में हस्तांतरित करा लिया। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इंग्लैंड की सरकार से इन खातों को सील करवा दिया। सबसे बड़ा रहस्योद्घाटन एक अत्यंत असाधारण घटना से हुआ, जो अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों में देखने को नहीं मिलती। भारत में बोफोर्स पर बवाल मचने के बाद एई सर्विसेज ने बोफोर्स को एक पत्र लिखा जिसमें अनुबंधित रकम की शेष 80 प्रतिशत राशि पर अपने तीन प्रतिशत का दावा छोड़ने की बात कही गई थी। क्या आपने किसी ऐसी कंपनी के बारे में सुना है जो लाखों डालरों पर स्वेच्छा से अपना दावा छोड़ दे? जैसे ही भारतीय जांचकर्ताओं ने इन बैंक दस्तावेजों को हाथ में लिया, क्वात्रोची तुरंत रफूचक्कर हो गया। इसके पश्चात इंटरपोल पर क्वात्रोची के लिए रेड अलर्ट जारी किया गया। इन तमाम सबूतों के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार ने क्वात्रोची के इंग्लैंड के खातों पर लगी रोक हटा ली और वह गलत तरीकों से हासिल किए गए इस काले धन को निकालने में कामयाब हो गया। इसके अलावा जब वह अर्जेटीना में पकड़ा गया तो जानबूझकर प्रत्यर्पण प्रक्रिया में बाधा पहुंचाई गई और अब कार्यकाल पूरा होने से तुरंत पहले इंटरपोल से रेड कार्नर नोटिस वापस ले लिया गया। इटली में पैदा हुए अपने आका की सेवा में इतना कुछ करने के बाद मनमोहन सिंह का कहना है कि क्वात्रोची मामला भारत सरकार के लिए शर्मिंदगी है क्योंकि इस घटना के बारे में विश्व का कहना है कि भारत एक इटलीवासी को परेशान कर रहा है। कानून मंत्री और कांग्रेस के प्रवक्ता भी उनके सुर में सुर मिला रहे हैं। अंतत: यह कितना भी अविश्वासी क्यों न हो, साहित्य-दूत से कांग्रेसी बने शशि थरूर क्वात्रोची को बेचारा भलामानुष बता रहे हैं। राजनीति में प्रवेश के लिए विचारों की इतनी दरिद्रता! अगर हम अपनी स्वतंत्रता और कानून व्यवस्था की अहमियत समझते हैं, अगर हम कानून के दायरे में और इससे बाहर लूटो और भागो की परंपरा से छुटकारा पाना चाहते हैं, अगर हम विदेशियों को अपने शासन को भ्रष्ट करने से बचाना चाहते हैं, तो इस आर्केस्ट्रा को तुरंत बंद करना होगा। हमें यह आशा भी करनी चाहिए ताकि नई सरकार के पास राजनीतिक शक्ति और प्रतिबद्धता होगी कि वह घोटाले की जड़ तक पहुंच सके और आधिकारिक रूप से घोषणा करे कि क्वात्रोची किसके लिए काम कर रहे थे?
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