---ठहरो---
ठहरो मुझे पूर्ण अधिकार है तुम्हें रोक लेने का,
चाहे अब तक कुछ न कहा हो मैंने तुम्हें शब्दों के माध्यम से,
पर एक अधिकार है मेरे पास जो मेरी भावना ने मुझे दिया,
वह भावना जिसमें तुम बसती हो तुम्हारी स्वीकृति बसती है,
उस स्वीकृति के आधार पर कहता हूँ की,
ठहरो मुझे पूर्ण अधिकार है तुम्हें रोक लेने का !!
आवश्यकता भी क्या है प्यार को अभिव्यक्ति के लिए शब्दों की,
यह तो तरंगों की तरह एक दिल से दूसरे दिल में सफ़र करता है,
जैसे कोई कवि भावना में बह कर भावना का वर्णन करता है,
वैसी ही एक भावना तुमने मुझे दी है उसी भावना के आधार पर कहता हूँ की,
ठहरो मुझे पूर्ण अधिकार है तुम्हें रोक लेने का !!
देखो तुम न रुकीं तो मैं यह मान लूँगा की सभी कल्पनाएँ प्यार की झूठी हैं,
चलो एक अनौपचारिकता यह भी सही अनौपचारिकतावश ही रुक जाओ,
क्योंकी मैं प्यार हूँ अनौपचारिकता नहीं उसी की कसम देकर कहता हूँ की,
ठहरो मुझे पूर्ण अधिकार है तुम्हें रोक लेने का,
चलो मुस्कुरा कर तुम ठहर तो गईं इतनी देर तक,
पर मैं जानता हूँ की तुम यही कहने रुकी हो की अब मैं चलूगी रात ढलने वाली है,
न जाने तुम शाम को रात से कैसे जोड़ लेती हो चलो जो भी हो अब मैं न रोकूंगा,
क्योंकी मेरे रोकने पर भी तुम चली गईं तो मैं खो दूंगा यह अधिकार कहने का की,
ठहरो मुझे पूर्ण अधिकार है तुम्हें रोक लेने का,
चलो जाती हो तो जाओ पर कल फिर मुझे कहीं यूँ ही मिल जाना,
देखो खुद ही रुक जाना क्योंकी कल आज की तरह पहली मुलाकात न होगी,
कल हम दोस्त बन जाएँगे, ऐसे दोस्त जिन्हें यह कहने की जरूरत न होगी की,
ठहरो मुझे पूर्ण अधिकार है तुम्हें रोक लेने का,
यह कविता या अभिव्यक्ति 1987 में साउथ कैम्पस लाइब्रेरी दिल्ली ( पहले यह लाइब्रेरी साउथ एक्सटेंशन पार्ट - 1 में एक कोठी में होती थी) में एक पुस्तक में किसी नें रखी थी वह पुराने कागजों में आज मुझे मिली पुरानी यादें ताज़ा हो गईं आपके समक्ष प्रस्तुत है !
शान्त प्रकाश
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