Monday, March 04, 2013

कांग्रेस के शासन में ही क्यों होते हैं हिन्दू मुस्लिम दंगे ?


कांग्रेस के शासन में ही क्यों होते हैं हिन्दू मुस्लिम दंगे ?

खुद गुनाह करते हो और आरोप राष्ट्रभक्त हिन्दुओं पर लगते हो, गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे जो स्वयं हिन्दू हैं और शोलापुर आरक्षित लोकसभा से सांसद हैं राजस्थान में कांग्रेस के चिंतन शिविर में बयान देते हैं की देश में आतंकवाद का प्रशिक्षण संघ व् भाजपा के शिविरों में दिया जाता है बेशक बज़ट सत्र से पूर्व भाजपा दबाव के कारण उन्होनें खेद व्यक्त किया है पर सच्चाई आप ही तय करें क्या है।

वर्ष 2012 में आसाम जहाँ से देश के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह राज्यसभा सांसद बने दंगों से झुलसता रहा लगभग 11 जिलों व् 500 से ज्यादा गांवों के लाखों लोग बेघर हुए हजारों घायल हुए सेंकडों मारे गए और प्रधानमंत्री जी नें सिर्फ हवाई दौरा क्षेत्र के ऊपर से कर इतिश्री कर ली।

आपातकाल के बाद पंजाब में अलगाववाद के नाम पर सिख आतंकवाद  का विषैला बीजारोपण कर पोषित किया परिणाम स्वरुप पंजाब वर्षों तक आतंकवाद की आग में झुलसा, स्वर्णमंदिर पर सैनिक कार्यवाही और 1984 में देश भर में 3000 से ज्यादा सिख जलते टायर गले में डाल जिन्दा जलाये गए लगभग 3 लाख परिवार बेघर हुए। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी नें कहा था की "बड़ा वृक्ष गिरता है तो धरती हिलती है" परिणाम स्वरुप गुनहगार आज भी खुले हैं और खुलेआम कांग्रेस की नेतागिरी कर रहे हैं। क्यों ?

आज़ादी के बाद अब तक कांग्रेस शासन में लगभग 650 हिन्दू मुस्लिम दंगे बड़े स्तर पर हुए जिनमें लगभग 32 हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए हैं। गुजरात को ही लें 1969 से 1993 तक 21 मर्तबा हिन्दू मुस्लिम दंगे हुए सभी कांग्रेस शासन में, इन दंगों के पीछे एक ही उद्देश्य रहा की किसी भी तरह हिन्दू मुस्लिम एक न हो जाएँ यह आपस में भिड़ते रहें और कांग्रेसी मुस्लिमों को दंगे के लिए पनहा देते रहें एवं दुर्भावना के आधार पर यह दोनों एक नहीं हो सके और चुनावों में मुस्लिम खुल कर कांग्रेस का समर्थन करता रहे।

इसी प्रकार दक्षिण भारत में तमिल आतंकवाद भी कांग्रेस द्वारा पोषित किया गया जो नासूर के रूप में देश को जख्म दे गया।

सितम्बर 2006 को मालेगांव में हुए बम विस्फोटों के सम्बन्ध में महाराष्ट्र ATS नें 21 दिसम्बर 2006 को कोर्ट में चार्जशीट प्रस्तुत कर दी। 22 दिसम्बर 2006 को अबरार अहमद ने गुनाह कबूल करते हुए सरकारी गवाह बनने काप्रार्थना पत्र न्यायलय के सम्मुख प्रस्तुत किया। सारा प्रकरण सुलझ जाने के बाद क्या कारण था की 22 दिसम्बर 2006 को ही महाराष्ट्र सरकार ने प्रकरण CBI को सौप दिया ? क्या कारण है कि तब से आज तक उक्त प्रकरण में कोई प्रगति नहीं हुई है ? क्या कारण है की 2006 के मालेगाव बम विस्फोट प्रकरण को सफलता पूर्वक हल करने वाले ATS के प्रमुख श्री रघुवंशी को चार्जशीट प्रस्तुत करने के तुंरत पश्चात हटा कर रेलवे पुलिस बल का प्रमुख बनाकर भेज दिया ? 2006 मालेगांव विस्फोट प्रकरण को हल करने के लिए न तो नारको टेस्ट की आवशयकता पड़ी, न ब्रेन मैपिंग की, न किसी अन्य वैज्ञानिक जांच प्रक्रिया की।

18-19 फरवरी 2007 को हरियाणा में समझोता एक्सप्रेस में विस्फोट हुए। अप्रैल 2007 को सफ़दर नागौरी ने नार्को टेस्ट के दौरान यह स्वीकार किया की समझोता एक्सप्रेस के विस्फोट में सिमी कार्यकर्ताओ का हाथ था। यह खुलासा होने के बाद भी हरियाणा पुलिस ने जाँच को आगे बढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। क्या कारण है की अब महाराष्ट्र ATS समझोता एक्सप्रेस प्रकरण की जांच को मोड़ कर हिन्दू संगठनों को घेरे में लाना चाहती है? क्या महाराष्ट्र ATS पूरे देश की जाँच एजेंसी बन गयी है ? क्या यह ATS वही है जिसने 8 सितम्बर विस्फोट की जाँच को महाराष्ट्र सरकार ने ही अविश्वसनीय मान लिया था ? जो ATS भोपाल में उतरने के लिए जो स्वयं झूठ बोले की हमारे साथ मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख है, उसकी किस बात को सत्य माना जाये ? महाराष्ट्र ATS को बुल्स कंपनी का विमान किसने उपलब्ध करवाया ? देश के 28 राज्यों में ATS या उस जैसी संस्थाए अपराधों एवं अपराधियों को खोजती हे उसमे से केवल महाराष्ट्र को ही क्यों चुना ? क्या इसलिए की इस पार्टी का जहाँ शासन हे वही पार्टी केंद्र में भी हे तथा उसी पार्टी के केन्द्रीय गृहमंत्री हैं ?

सीबीआई को प्रकरण सौंपने के लिए कोई मांग की जाती है किन्तु मालेगांव के दूसरे विस्फोट की जांच ATS एवं सीबीआई दोनों के सलाह से आगे बढ़ रही है  क्या यह केंद्र एवं महाराष्ट्र की मिलीभगत नहीं हे ? क्या महाराष्ट्र ATS प्रमुख की तरह सीबीआई के सीनियर ऍम.एल शर्मा के बजाए राजीव गाँधी के सिक्योरिटी में रहे आश्विनिकुमार को सीबीआई प्रमुख बनाया जाना अन्तराष्ट्रीय दबाव में किये षड़यंत्र का अंग तो नहीं है ?

गुजरात के डांग क्षेत्र में वनवासी बंधुओ में सेवा कार्य कर रहे है स्वामी असीमानंद जी को भी महाराष्ट्र ATS ने जांच के घेरे में लिया है। स्वामी असीमानंद के सेवाकार्य से वहां कार्यरत ईसाई मिशनरियो के इशारे पर ATS के माध्यम से स्वामी असीमानंद जेसे हिन्दू संतो को निशाना बना रही है ?

उडीसा में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती एवं उनके पांच साथियों की जघन्य हत्या करने वाले अपराधी आज भी कानून की पकड़ के बहार हैं। इस जघन्य हत्याकांड के पश्चात पूरे उडीसा में हिन्दुओ का आक्रोश उबल पड़ा। इस उफनते आक्रोश ने यूरोप और अमरीका की सरकारों को एवं ईसाई मिशनरियों को चिंता में डाल दिया।

क्या मालेगांव 2008 विस्फोट की जाँच के माध्यम से एक अन्तराष्ट्रीय साजिश के तहत हिन्दुओ को दबाने, बदनाम करने तथा कुचलने का षड़यंत्र रचा गया है ? विस्फोट के पश्चात् स्वयंभू हिन्दू नेता कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित, दयानन्द पाण्डे उर्फ़ सुधाकर तथाकथित शंकराचार्य अमृतानंद (जिसे युवा कांग्रेस नें लाखों रूपए खर्च कर शंकराचार्य बनवाया ) तथा आर पी सिंह ( सरकार का मुखबिर ) आदि पकडे गए इनमें कोई भी संघ का पदाधिकारी नहीं था नें माना की 2007 व् 2008 के विस्फोट हेतु उन्होंने सामान जुटाया व् विस्फोट करवाया वह सब जांच से बाहर क्यों हैं ? जबकि ए टी एस एवं केंद्र सरकार नें यह भी बताया की यह पुरोहित, अमृतानंद तथाकथित शंकराचार्य एवं डा0 आर पी सिंह के अनुसार संघ का हिंदुत्व कमजोर हो रहा है जिसके जिम्मेवार माननीय मोहन जी व् इन्द्रेश जी हैं इसलिए उनकी हत्या का षड्यंत्र बना कर प्रयत्न भी किया गया। वहीँ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जिसको महज एक मोटर साईकिल जिसे उसने वर्षों पहले बेच दिया था विस्फोट में इस्तेमाल होने के कारण जेल में प्रतारणा दी जा रही है। साध्वी का चार बार नार्को टेस्ट व कई दफा ब्रेन मेपिंग जांच की गई पर जाँच अधिकारियों को कुछ नहीं मिला, तब उनका कहना है की साध्वी प्राणायाम करती है जिस कारण से नार्को व् ब्रेन मेपिंग फेल हो रहे हैं। आज साध्वी कैंसर व् रीड की बीमारी से पीड़ित भोपाल जेल में बंद है।

गृहमंत्री जी एवं महाराष्ट्र एटीएस जवाब दें दिलीप पाटीदार कहाँ है ?

मालेगांव में हुए बम धमाकों के बाद महाराष्ट्र एटीएस नें 11 नवम्बर 2008 को इंदौर से कई युवकों को हिरासत में लेकर पूछताछ की थी जिनमें खजराना थाना क्षेत्र का निवासी दिलीप पाटीदार भी था। एटीएस का कहना था कि दिलीप मालेगांव ब्लॉस्ट का अहम गवाह है। एटीएस ने अभी तक न तो उसकी गिरफ्तारी दिखाई है और न ही वह वापस लौट कर आया है। आठ दिन तक तो दिलीप के फोन घर पर आते रहे और वह सिर्फ इतना कहता रहा कि वह ठीक है जल्दी ही लौट आएगा लेकिन 18 नवम्बर के बाद न तो दिलीप का फोन आया और न ही दिलीप को मालेगांव ब्लास्ट मामले में एटीएस ने आरोपी बनाया।

24 नवंबर 2008 दिलीप के नहीं लौटने पर उनके भाई रामस्वरूप ने एडवोकेट दीपक रावल के जरिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका इंदौर उच्च न्यायलय में दायर की। 1 दिसंबर 2008 कोर्ट ने मामले में मुंबई एटीएस और स्थानीय पुलिस को नोटिस जारी किए। 2 अप्रैल 2009 जस्टिस ए एम सप्रे व प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने इंदौर एसपी को एक महीने में मामले में रिपोर्ट पेश करने को कहा। 17 सितंबर 2009 कोर्ट ने कहा मुंबई एटीएस और इंदौर पुलिस मिलकर नहीं ढूंढ पाए तो एटीएस कमिश्नर को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में आना होगा। 5 नवंबर 2009 जस्टिस सप्रे और एस के सेठ की पीठ ने एटीएस और मप्र पुलिस की संयुक्त कमेटी गठित की ताकि दिलीप को ढूंढा जा सके। 10 दिसंबर 2009 जस्टिस एस एल कोचर और सेठ की पीठ के समक्ष एटीएस ने रिपोर्ट पेश की कि दिलीप की सिम से बात की गई है और वह जिंदा है। कोर्ट ने कहा दो महीने में अंतिम रिपोर्ट दी जाए। 29 जुलाई 2010 एडवोकेट रितु भार्गव ने जस्टिस कोचर व शुभदा वाघमारे की पीठ के समक्ष सीबीआई जांच की मांग रखी। कोर्ट ने नाराजगी जताई कि दोनों पक्षों की अड़चनों के कारण फैसला नहीं हो पा रहा, जबकि छह महीने में यह केस निपट जाना था। 17 अगस्त 2010 जस्टिस केमकर और प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने सहायक सोलिसिटर जनरल विवेक शरण के जरिए सीबीआई को नोटिस देकर पूछा कि क्या वह इस केस की जांच कर सकती है? 9 सितंबर 2010 सीबीआई ने कोर्ट को बताया हम भ्रष्टाचार के केस हाथ में लेते हैं, जबकि यह क्रिमिनल केस है। यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के आदेश पर हम केस में जांच करते हैं। 23 सितंबर 2010 सभी पक्षों की राय सुनने के बाद केस में फैसला सुरक्षित रखा गया। 1 अक्टूबर 2010 कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश जारी किए।

लेकिन सीबीआई न तो दिलीप की तलाश कर सकी और न ही उसके लापता या मृत होने के विषय में एटीएस के अधिकारियों की भूमिका या जिम्मेदारी तय कर सकी ! सीबीआई द्वारा यह दलील दी गई की एटीएस मुबंई जांच मे सहयोग नही कर रही है। जिसको न्यायालय ने नकारते हुए कहा कि सीबीआई दिलीप को ढूंढने के साथ यह भी बताए कि उसने एटीएस के खिलाफ क्या कार्यवाही की। शाजापुर जिले के दुपाड़ा का निवासी दिलीप पाटीदार इंदौर में इलेक्ट्रिशियन का कार्य करता था और शांति विहार कॉलोनी के शिवनारायण कलसांगरा और रामजी कलसांगरा के मकान में पत्नी और एक बच्चे के साथ किराये पर रहता था। मालेगांव ब्लास्ट में शिवनारायण मुंबई एटीएस की गिरफ्त में है, जबकि हैदराबाद की मक्का मस्जिद में 18 मई 2007 को हुए ब्लॉस्ट के आरोपी रामजी पर सीबीआई ने दस लाख का इनाम घोषित किया है। लापता होने के कुछ दिन पहले ही दिलीप ने खजराना थाने में रिपोर्ट लिखवाई थी कि मुंबई एटीएस का एक दल चोरी से शिवनारायण के घर में घुसा और वहां रखे हथियार व अन्य सामान अपने साथ ले गया। इसके बाद ही मुबंई एटीएस ने 10-11 नवंबर 2008 की रात में दिलीप को उठाया था।


क्या ‘भगवा आतंक’ हिंदुओं एवं मुस्लिमों को राजनीतिक रूप से समान करने का एक उन्मादी प्रयास है? जिसके लिये नैतिकता को ताक पर रख दिया गया है? इसके लिये बताये जाने वाले परिप्रेक्ष्य के मूल चित्र के साथ ही कुछ गडबड है, मिलान के हर संभव प्रयास के उपरांत भी पहेली के टुकड़े एक दूसरे के साथ जुड़ते दिखाई नहीं देते, और ना ही यह इस ताले की चाबी है

शान्त प्रकाश जाटव

No comments:

Post a Comment