प्रतिष्ठा में, दिनांक – 9 जनवरी 2016
आदरणीय श्री नरेंद्र
दामोदर मोदी जी
माननीय
प्रधानमन्त्री, भारत सरकार,
प्रधानमन्त्री कार्यालय, साउथ ब्लाक, नई दिल्ली –
110011
विषय – अनुसूचित जातियां
अछूत या अस्पर्श्य नहीं
मान्यवर,
भारत में पहली बार जनगणना 1881 में अंग्रेजी
हुकुमत द्वारा की गई 1891 और 1901 तक जनगणना धर्माधारित होती रही, जिसमें 1.
मुस्लिम 2. हिन्दू 3. ईसाई की गणना होती थी. 1911 की जनगणना में हिन्दू धर्म को
विभाजित करने के आशय से हिन्दुओं को अंग्रेजों नें तीन वर्गों में बांटा.
1. हिन्दू
2. प्रकृति पूजक आदिवासी
3. अछूत
अछूतों की गणना बाकी
लोगों से अलग करने के लिए जनगणना आयुक्त नें दस मानदण्ड अपनाये, अर्थात अछूत वह है
जो –
1 ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को नहीं मानते
2.
किसी ब्राह्मण या अन्य मान्यता प्राप्त हिन्दू से गुरु
दीक्षा नहीं लेते
3.
वेदों की सत्ता स्वीकार नहीं करते
4.
बड़े-बड़े हिन्दू देवी देवताओं की पूजा नहीं करते
5.
ब्राह्मण जिनकी यजमानी नहीं करते
6.
जिनका कोई ब्राह्मण पुरोहित बिलकुल भी नहीं होता
7.
जो साधारण हिन्दू मंदिरों के गर्भ-स्थान में प्रवेश नहीं कर
सकते
8.
जिनसे छूत लगती है
9.
जो अपने मुर्दों को दफनाते हैं
10. जो गोमांस खाते हैं और गए
की पूजा नहीं करते
इन मानदंडों में चमड़े का कार्य, मल उठाना, कपड़ा
बुनना, मांस का कार्य आदि करने वाला अछूत होगा ऐसा कोई उल्लेख नहीं है.
1935 भारत सरकार अधिनियम में अंग्रेज सरकार
द्वारा अनुसूचित जातियों में 429 जातियां शामिल की गईं जिसके सन्दर्भ में डॉ
अम्बेडकर नें अपनी पुस्तक अछूत कौन और कैसे में भी वर्णन किया है की वैदिक वर्ण
व्यवस्था में अस्पर्श कार्य करने वाली जातियों में से केवल एक जाति को इस अनुसूची
में शामिल किया गया है उनके इस कथन से यह सिद्ध होता है की शेष 428 जातियां वर्ण व्यवस्था
के आधार पर अछूत नहीं बल्कि ऊपर लिखित अंग्रेजों द्वारा निर्धारित मानदंडों के
अनुसार अछूत हैं.उक्त दस मानदंडों को पढ़ने से साफ़-साफ़ समझा जा सकता है की सिर्फ
हिन्दू धर्म को विभाजित करने के आशय से अंग्रेजों द्वारा यह मानदण्ड अपनाये गए.
मेरा आपसे विनम्रता
पूर्वक आग्रह है चूँकि उक्त तथ्यों से यह प्रमाणित हो रहा है की अनुसूचित जातियां
अछूत या अस्पर्श्य कर्माधारित नहीं और न ही 5000 साल पुरानी वैदिक वर्ण व्यवस्था
अनुसार बल्कि हिन्दू धर्म को विभाजित करने के आशय से अंग्रेजों द्वारा तय किये गए
मानदंडों के आधार पर घोषित की गई लिहाजा इन मानदंडों को ख़ारिज कर अनुसूचित जातियों
के सन्दर्भ में समीक्षा कर पुनर्विचार किया जाये.
भवदीय
शान्त प्रकाश जाटव
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