संवाददाता.
नई दिल्ली. 23 मार्च. वरिष्ठ भाजपा नेता शांत प्रकाश जाटव ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एससी एक्ट में किये गये बदलाव पर अफसोस जताते हुए कहा है, कि यह निर्णय अनुसूचित जाति के उत्पीड़न को बढ़ावा देगा. जाटव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुसूचित जाति व जनजाति के उत्पीड़न पर तुरंत एफआईआर तथा गिरफ्तारी रोकने पर पुनर्विचार करने तथा कानून में संशोधन की मांग की है. शांत प्रकाश जाटव ने कहा कि कानून में उक्त संशोधन न केवल कानून के दुरुपयोग को रोकेगा बल्कि समाज में व्याप्त समस्या को खत्म करने में सहयोग करेगा.
उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है, कि समाज हित में अनुसूचित जाति जनजाति कानून में संशोधन कराने का कष्ट करें तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पुनर्विचार कर ‘जैसा था वैसा ही रहने दिया जाए.’
जाटव ने प्रधानमंत्री के नाम लिखे इस पत्र में कहा है, कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पुणे महाराष्ट्र में दर्ज एक शिकायत, जिसमें शिकायतकर्ता ने दो अधिकारियों के खिलाफ अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के अंतर्गत शिकायत की थी, उसके गलत पाये जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति जनजाति कानून के अंतर्गत तुरंत एफआईआर तथा गिरफ्तारी पर जो रोक लगाई है, वह दुर्भाग्यूपर्ण है. पत्र में जाटव ने सामाजिक न्याय विभाग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों का हवाला देते हुए लिखा कि वर्ष 2015 में कुल 15638 मामले अनुसूचित जाति जनजाति कानून के अंतर्गत दर्ज हुए, जिनमें 11024 में अभियुक्त बरी हुए, 495 मामलों में केस वापसी तथा 4119 को सजा मिली.
उन्होंने कहा कि उक्त आंकड़ों से यह साफ है कि 4119 मामले अपराध होने की स्पष्ट तौर पर पुष्टि करते हैं, जो एक कड़वी सच्चाई है. उन्होंने कहा कि भारत को आजाद हुए 70 वर्ष हो चुके हैं और आज भी दबंगों द्वारा कमजोर व गरीब वर्ग पर अस्पृश्यता के आधार पर किए जा रहे अत्याचार दुर्भाग्यपूर्ण हैं.
जाटव ने पत्र में लिखा है, कि एक बात और विचारणीय है, कि जो 495 मामले वापस लिए गए उसमें भी पीड़ित पर कितना सामाजिक दबाव बनाया गया होगा, जिसके चलते मामले वापस लिए गए.
प्रधानमंत्री के नाम लिखे इस पत्र में कहा गया है, कि यह भी कटु सत्य है कि व्यक्तिगत विद्वेष के कारण या किसी के प्रभाव के कारण झूठे मामले भी दर्ज हुए. ऐसे में जरूरी है, कि इस प्रकार के झूठे मामले साबित होने पर शिकायतकर्ता पर मामला दर्ज करते हुए उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए. ना कि अनुसूचित जाति के हितग्राही इस कानून को बदला जाये.
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